पोस्ट कोविड सिंड्रोम अर्थात कोरोना की पूँछ

24 May 2021 पोस्ट`कोविड`सिंड्रोम`अर्थात`कोरोना`की`पूँछ

 कोविड महामारी में हम सब ने जितना विस्तृत और सार्वभौमिक कष्ट देखा उस से ज़्यादा लालच देखा. सत्तर के दशक में महंगाई के पर्याय जमाखोरी, मुनाफाखोरी और कालाबाज़ारी एक बार फिर पूरे समाज में छा गए.

लालची लोगों ने ऐसी कौन सी चीज़ थी जिसका फायदा सिर्फ पैसे के लिए ही नहीं उठाया बल्कि अपना सामाजिक और राजनैतिक कैरियर चमकाने में भी इस महामारी का भरपूर उपयोग किया.

और चिकित्सकों ने सिर्फ बीमारी से ही लड़ाई नहीं की बल्कि उन्हें गलत जानकारियों और अपने प्रति संदेह के उफान से भी जूझना पड़ रहा है  जो पूरे समाज में छाया हुआ है

कोरोना से लड़ाई में बहुत लोग खेत रहे तो एक बड़ी संख्या घायलों की भी है जो जीवन भर के घाव ले कर जीने के लिए मजबूर रहेंगेयह सच है कि कोई भी चिकित्सक आपने जो परिजन खोये हैं वापस नहीं ला सकता न आपका  पैसा और प्रतिष्ठा वापस ला सकता है पर कोविड से अभिशप्त जीवन के कष्ट कम तो अवश्य ही कर  सकता है

आमतौर पर हर साल ही हम वाइरल के बाद खांसी, अपच और चक्कर आदि के केस देखते ही रहते थे जो कुछ समय तकलीफ दे कर चले जाते थे पर इस बार आपदा बड़ी है तो इसके प्रभाव भी विस्तृत और दीर्घकालिक हैं.

कहते हैं हाथी निकल गया पूँछ रह गयी तो ये कोविड की पूंछ क्या है जो जाती नहींऐसा क्या है जो बीमारी में गिना नहीं जाता और परेशान भरपूर करता है  यद्यपि यह केवल कोविड के साथ ही हो ऐसा नहीं है किसी भी बीमारी के बाद इसी  तरह विभिन्न परेशानियां रह जाती हैं परन्तु उस बीमारी के साथ सन्दर्भ जोड़ कर काम करने पर इन सभी में लाभ मिल सकता है.

इन तकलीफों को कोविड के दीर्घकालिक प्रभाव भी कह सकते हैं तो सबसे पहले बात करते हैं पोस्ट कोविड सिंड्रोम क्या है इसके लक्षण क्या हैं.

सामान्यतः कोविड रोगी कुछ हफ़्तों में कोरोना से पूरी तरह मुक्त हो जाते हैं पर कुछ लोगों में शुरुआती रिकवरी के बाद भी कुछ लक्षण बने रहते हैं यदि कोरोना होने के चार सप्ताह बाद भी यह लक्षण बने रहे तो हम व्यक्ति को कोरोना के दीर्घकालिक प्रभावों से ग्रसित मान सकते हैं.

प्रभावित व्यक्ति भले ही युवा हो और अन्यथा स्वस्थ भी दिखाई दे पर उनमे यह लक्षण आरंभिक आराम के हफ्तों और कई बार महीनो बाद तक दिखाई दे सकते हैं.

सामान्यतः इन लम्बे समय तक बने रहने वाले लक्षणों में शामिल हैं थकान, सांस लेने की कठिनाइयां, खांसी, जोड़ों का दर्द, सीने में दर्द, सर या मांसपेशियों का दर्द, तेज़ ह्रदय गति या सीने में धमक, स्वाद या सूंघने की शक्ति कम हो जाना, याददाश्त की कमी और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई, नींद की गड़बड़ियां, अवसाद और चिंता, चिड़चिड़ापन, बुखार, उठने और खड़े होने पर चक्कर या फिर इन सभी का मानसिक या शारीरिक श्रम करने पर बढ़ जानाआप से अनुरोध है कि इन लक्षणों को न तो सूची की तरह पढ़ें न इस पर कोई निष्कर्ष निकालें सीधे अपने चिकित्सक से मिले और उन्हें ही इस पर निर्णय लेने दें.

कोविड सामान्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है पर इसका प्रभाव मस्तिष्क, ह्रदय, किडनी और रक्त की नलियों वाहिकाओं पर भी पड़ सकता है जहाँ यह विभिन्न अंगों और सिस्टम्स में सूजन पैदा कर सकता है  क्योंकि कोविड ऐसा आपके ही रोग प्रतिरोधक तंत्र को बिगाड़ कर करता है और इस तंत्र के दोषों के निवारण में होमियोपैथी की उपयोगिता जग जाहिर है इसलिए इस तरह की दीर्घकालिक समस्याओं के समाधान में होमियोपैथी एक महत्वपूर्ण और उपयोगी भूमिका निभा सकती है. 

वर्षों पहले मैंने वाइरल बुखार के बाद होने वाले कष्टों के बारे में लिखा था कि किस तरह गोली खाओ काम पर चलो की सोच आपको लम्बे समय तक परेशान रखती है पर यह बात जीवन की आपाधापी और सौ में से एक सौ दस लाने के लालच की भीड़ में खो गयी.

चिकित्सा का उद्देश्य सिर्फ बुखार उतारना नहीं होता इलाज समग्र यानि पूरा होना चाहिए पर लालच और जल्दबाज़ी का पर्दा आपको पूरे परिदृश्य को देखने नहीं देता बल्कि अगर कोई डॉक्टर आपको दिखाना भी चाहे तो आप को लगता है डॉक्टर पैसे बनाना चाह रहा है.

कहते हैं कि आपदा अवसर भी लाती है तो इस बार आपके पास अवसर है कि आप बीमारी को इसके पूरे विस्तृत रूप में देख सकें. बुखार उतर गया, ऑक्सीजन लेवल ठीक हो गया और आपने समझ लिया की आप ठीक हो गए पर यह कमज़ोरी तो आपका साथ नहीं छोड़ रही जिसे आप अगर जवान हैं तो समय पर छोड़ देते हैं और अगर उम्र ढलान पर है तो बुढ़ापे के माथे दोष मढ़ कर शांत हो जाते हैं मगर आप भूल जाते हैं की इस बार आपका सामना मामूली वाइरल से नहीं विश्वविजयी कोविड से है.

मेरे पास भी अवसर है बताने का कि क्या मूल्यवान है और किस पर ध्यान देने से जीवन बेहतर चलेगा. क्योंकि आप त्रस्त हैं और पिछले एक वर्ष में आपने यह जाना और सीखा है कि रोगप्रतिरोधक क्षमता अर्थात इम्युनिटी क्या होती है और किस तरह दवाओं से अधिक इसका महत्त्व है और किस तरह हमारी जीवन शैली और मानसिक दशा इसको प्रभावित करती हैं  अर्थात किस तरह हमारे जीवन जीने का तरीका ही हमे रोगों से बचा सकता है और यह भी कि किस तरह होमियोपैथी रोग केंद्रित न हो कर जीवन केंद्रित हैजीवन की समस्थिति यानि होमियोस्टेसिस के लिए होमियोपैथी सर्वोत्तम है.

होमियोपैथी का गुणगान हम बाद में कर लेंगे की किस तरह होमियोपैथी समग्र है सक्षम है और यह कि इसमें न केवल फेफड़ों के स्तर पर बीमारी से लड़ने की शक्ति है बल्कि कोशकीय स्तर पर भी ऑक्सीजन के प्रवाह को दुरुस्त करने की शक्ति है पर इस सब के सफल सञ्चालन के लिए  बेहद सक्षम होमियोपैथ का साथ अपरिहार्य है. 

डिसऑटोनॉमिआ या इसी तरह की गड़बड़ी के कारण आपके सारे काम जो एक विशेष तंत्रिका तंत्र के सहारे स्वतस्फूर्त ढंगसे चल रहे थे बिगड़ जाते हैं और इस तरह से पूरे शरीर में अव्यवस्था और आपाधापी का वातावरण बन जाता है कि कोई भी  चीज़ सही ढंग से काम ही नहीं करती इसको सही करने जो सूत्र आपके हाथ में है वह है शांत और रिलैक्स रहना इसके अलावा अपनी नींद को किसी भी तरह के व्यवधान और अनियमितता से बचाना, शेष के लिए योग्य चिकित्सक की सेवा लीजिये

न कोई चिकित्सा पद्धति सम्पूर्ण है न कोई चिकित्सक सर्वशक्तिमान न हम सब में से कोई अमर पर जो जीवन हमें मिला है उसका सर्वहितकारी और सर्वोत्तम उपयोग करने में ही समझदारी है और यही स्वस्थ होने और बने रहने की पहली सीढी है

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