नये रोगी केवल पूर्व निर्धारित समय पर देखे जाएँगे. समय लेने के लिए क्लीनिक में सम्पर्क करें.
ऑनलाइन पंजीकरण के लिए कृपया इस पते पर संपर्क करें.
http://www.draryas.com/Registration.html
नये रोगियों के लिए उपलब्ध निर्देश-सूची अवश्य प्राप्त करें तथा ध्यान से पढ़ें और मुख्य बिंदु कागज़ पर नोट कर लें.
जिन बातों को आप कहने में संकोच करते हों उन्हें ई-मेल द्वारा भेज सकते हैं या फिर चिकित्सक के व्यक्तिगत व्हाट्सप्प नंबर पर भी भेज सकते हैं जिसे आप उनसे मांग सकते हैं.
अपने नंबर पर अनुपस्थित रोगी को नंबर पुनः लगाना होगा.
भूलने से बचने के लिए अपने रोग से संबंधित मुख्य बिंदु काग़ज़ पर नोट कर लाएँ.
पैथोलॉजी, एक्स-रे व अन्य जाँचें आप के रोग के बारे में समझने के लिए आवश्यक हैं तथा होमियोपैथिक इलाज में भी उपयोगी हैं. कृपया पुरानी रिपोर्ट ले कर आएँ और आवश्यक नई जाँचें कराने में अपने चिकित्सक के साथ सहयोग करें.
अपने चिकित्सक को पूरी बात बताएँ, आप की नज़र में कुछ तकलीफें अलग-अलग भले ही दिखाई दें पर आपस में संबंधित हो सकती हैं और एक दूसरे से जुड़ी हो सकती हैं.
वर्तमान बीमारी कब शुरू हुई किस समय, मौसम या परिस्थिति में बढ़ती है या घटती है.
होमियोपैथिक उपचार में वर्तमान बीमारी केसाथ-साथ पुरानी बीमारियों तथा परिवार में चल चुकी बीमारियों के बारे में भीबताएँ कि आपके माता-पिता, भाई-बहन इत्यादि को कौन सी बीमारियाँ चल रही हैंया रह चुकी हैं भले ही वह व्यक्ति जीवित है या नहीं, साथ रह रहा है यानहीं.
आपकी आनुवंशिक बनावट, पिछली बीमारियां और इंफेक्शन तथा मुख्य रूप से मानसिक तनाव और आघात आपकी वर्तमान बीमारी की दिशा और दशा तय करते हैं.
रोगों के पैदा होने में मानसिक दशा का बहुत योगदान होता है. बच्चों के केस में माता-पिता की मानसिक दशा और बड़ों के केस में स्वयं की. किसी मित्र, सम्बन्धी, परिजन, सहकर्मी, गर्लफ्रेंड, बॉयफ्रेंड आदि के व्यवहार से यदि कोई चोट पहुंची हो तो पूरी घटना बताएं.
धोखा, दुर्व्यवहार, यौन दुर्व्यवहार, पैसे या प्रॉपर्टी का नुकसान, कोई अपमान या सामाजिक प्रतिष्ठा को चोट, असफलता या अपेक्षित सफलता का न मिलना, मनचाहा कैरियर न बन पाना या नौकरी न मिल पाना, परिवार या कार्यस्थल पर मानसिक दबाव या उलझन, अपनी बात कहने की स्थिति न होना, शादी न हो पाना या शादी के बाद से तनाव पूर्ण वातावरण में रहना, परिजनों के स्वास्थ्य या कुशलता को लेकर बहुत चिंतित रहने से भी बहुत सी बीमारियां पैदा हो सकती हैं – इन परिस्थितियों और कारणों को चिकित्सक को बताएं.
क्या आप किसी चीज़ के लिए संवेदनशील हैं जैसे खाने की चीज़ें, गंध, धूल, परिस्थिति, मौसम, दवाएं इत्यादि?
क्या आपकी तकलीफें किसी समय विशेष में होती हैं जैसे दोपहर, सुबह, शाम, रात, बदलता मौसम, केवल दिन, केवल रात, खाने के बाद, सोने के बाद, चलने के बाद, सो कर उठने के बाद, माहवारी से पहले या बाद, सेक्स के बाद इत्यादि ?
यदि आपको कोई सपने बार बार दिखाई देते हैं तो चिकित्सक को अवश्य बताएँ.
यदि परिवार में किसी को कोई जन्म-जात रोग रहा है जैसे दिल में छेद, कोई अंग [अँगुलियाँ इत्यादि] कम या ज़्यादा होना, होंठ या तालू फटा हुआ होना, मल या मूत्र द्वार का न बना होना इत्यादि रहाहो तो चिकित्सक को अवश्य बताएँ.
यदि किसी तकलीफ़ के लिए कोई अन्य दवा ले रहे हैं या अन्य इलाज चल रहा है तो अवश्य बताएँ.
आपके भाई-बहन, माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी, चाचा-ताऊ-बुआ, मामा-मौसी आदि निकट संबंधियों में किसी को भी कोईतकलीफ़ रही है तो उसका उल्लेख अवश्य करें, विशेष रूप से साँस, टीबी, डायबीटीज़, गुर्दे की बीमारियाँ, थायराइड, कैंसर, ट्यूमर, गाँठें, ब्लडप्रेशर, हर्निया, बवासीर, काँच निकलना, नासूर, जोड़ों की तकलीफ़, माइग्रेन, पागलपन, अवसाद [डिप्रेशन] आदि. यदि आपको बचपन में या किसी अन्य समय खाँसी, निमोनिया, दस्त, पीलिया, खसरा, चेचक, मलेरिया, डेंगू, फोड़े-फुंसी, पथरी इत्यादि रह चुकी हैं या अन्य कोई बीमारी ज़ुकाम, बुखार आदि बार-बार होना रहचुका है तो अवश्य बताएँ.
यदि पिछले समय में त्वचा के रोगों जैसेदाने, फोड़े-फुंसी, दाद, खारिश, खुजली या खाल चटकना आदि के लिए दवा खाते या लगाते रहे हैं जैसे क्रैक क्रीम, बेटनॉवेट, जालिम लोशन, इचगार्ड आदि, अथवा पहले आपको पित्ती, एकज़ीमा या अन्य कोई एलर्जी आदि रही है अथवा कान बहने की शिकायत रही है तो अवश्य बताएँ.
बच्चों के रोगों के सन्दर्भ में बच्चे के जन्म के समय की परिस्थितियों के बारे में चिकित्सक को बताएं.
जब यह बच्चा गर्भ में था क्या परिवार में कोई क्लेश या अवसाद का माहौल था या माता-पिता, विशेष रूप से माँ किसी परेशानी या तनाव से गुज़र रही थी ?
क्या इस बच्चे के जन्म को लेकर को ईदु विधा थी और यह बच्चा अनचाहा गर्भ था भले ही बाद में इसे लेकर मन / निर्णय बदल लिया गया हो ?
क्या इस गर्भ को गिराने का कोई प्रयास किया गया था ?
क्या यह बच्चा गोद लिया गया है य दिहाँतो आप इसके जैविक माता पिता और परिवार के बारे में जो भी जानते हों चिकित्सक को बतायें.
बच्चे के जन्म के समय की घटनाएं और बीमारियां महत्वपूर्ण हैं भले ही कितनी भी छोटी क्यों न रही हों.
जन्म के समय पीलिया, निमोनिया, बुखार,आँखे चिपकना और ऐसी ही किसी घटना के बारे में चिकित्सक को बताएं.
क्या जन्म के तुरंत बाद बच्चा देर से रोया या इसे सांस लेने में परेशानी थी ऑक्सीजन देनी पड़ी थी?
बच्चे के जन्म में देरी हुई या यह समय से पहले हुआ था यदि ऑपरेशन से हुआ तो ऑपरेशन क्यों करना पड़ा था ?
डायबिटीज, थायरॉयड, ब्लड प्रेशर, टी बी या अन्य किसी रोग की दवा जिसे रोका जाना मना हो उसके बारे में चिकित्सक को सूचित कर अनुमति ले लें.
उपचार के दौरान तेज़ खुशबू वाली चीज़ों के इस्तेमाल से बचें.
दवा और खाने-पीने की चीज़ों के बीच आधे घंटे का अंतराल रखें पर पानी कभी भी पी सकते हैं. दवा खाली पेट भी खा सकते हैं.
होमियोपैथिक दवा से किसी प्रकार का नुक्सान न हीं होता फिर भी यदि दवा के बाद आप कोई अनचाहे परिणाम देखें तो सबसे पहले अपने चिकित्सक को बताएं अपने आप दवा में परिवर्तन न करें चिकित्सक से संपर्क न होने की स्थिति में दवा बंद करके फिर से संपर्क का प्रयास करिये.
चिकित्सा के दौरान कोई अन्य दवा न लें भले ही कितनी भी मामूली क्यों न हो जैसी पेनकिलर या खुजली आदि के ट्यूबव गैरह और यदि लेना ही पड़ा हो तो चिकित्सक को अवश्य बताएं.
यदि इलाज से आराम के बाद दवा चलते चलते भी कोई तकलीफ बढ़ जाये या नई हो जाये तो खो जिये की क्या हुआ हो सकता है भले ही देखने में बहुत छोटी बात मालूम पड़ती हो जैसे – खाने की गड़बड़ी, नींद की गड़बड़ी, कोई तनाव या किसी कारण से कोई दवा खानी पड़ी हो जैसे ज़ुकाम-बुखार या कोई दाने-खुजली आदि.
आपकी जीवन शैली इलाज को प्रभावित करती है अतः इस संबंध में दिए गये सुझावों / निर्देशों का कठोरता से पालन करें.
खान-पान, सोना-जागना, रहन-सहन, व्यायाम और काम के घंटे और तरीके आप की जीवन शैली के ही अंग हैं इन पर ध्यान दें.
रात को जल्दी सोना और सुबह जल्दी उठना आपकीजैविक घड़ी को सुचारु रखते हैं और आप बहुत से रोगों विशेष रूप से हॉरमोनसंबंधी रोगों से बचाव कर पाते हैं. आसानी से समझने के लिए जिस तारीख में आपसो कर उठें उसी तारीख में रात को सोना आवश्यक है अर्थात रात 12 बजे सेपहले सो जाएँ.
नींद आसानी से आए इस के लिए अपने आप को शेषदुनिया से डिसकनेक्ट करना सहायक होगा अतः फोन, कंप्यूटर और टी वी को सोनेके समय से कुछ समय पहले बंद कर दें. बचे हुए समाचार, संदेश और संवाद आपअगले दिन पढ़ सकते हैं.
किसी भी अन्य नशे की तरह सोशल मीडिया याइंटरनेट का नशा भी आपकी मानसिक कमज़ोरी का परिचायक है और उसी तरह इस का भीउपचार होता है और किया भी जाना चाहिए.
एक दिन में सदा 24 घेंटे ही रहेंगे. अपने सभी कार्यकलापों को इसी सीमा रेखा में यथोचित समय दें. शेष बचे काम अगले दिन के लिए रख दें. लालच सदा ही बुरी बला है.
अपने कामों की प्राथमिकता के अनुसार सूचीबनाएँ और उस सूची के अनुसार कार्य करें. ध्यान रहे जीवन में स्वास्थ्य सेअधिक मूल्यवान प्राथमिकता कोई और नहीं. बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ पाना हो यासुख भोगने का आनंद लेना हो इस शरीर का स्वस्थ होना अति आवश्यक है.
अपने दिन में से आधा घंटा किसी रचनात्मक याखेल-कूद वाली गतिविधि को दें. यह आपको मानव बनाए रखने में और मशीन बनने सेरोकने में सहायक होगी. व्यायाम के मुक़ाबले अपने प्रियजनों, मित्रों के साथ खेलने को प्राथमिकता दें.
भोजन का समय नियमित रखें. भोजन की मात्रा नियत रखें. भोजन अच्छी तरह चबा कर खाएँ. भोजन के समय ध्यान बाँटने वाली गतिविधि जैसे टीवी देखना आदि न करें.
दिन भर पानी भरपूर पिएं पर पानी भोजन सेआधा घंटा पहले या आधा घंटा बाद पिएं. भोजन इतना चबा कर खाएँ कि भोजन के बीचकम से कम पानी पीना पड़े.
होमियोपैथी द्वारा आप बहुत सी बीमारियों का सफल उपचार कर सकते हैं और अनावश्यक शल्य क्रिया से बच सकते हैं.
शल्य चिकित्सा एक महत्वपूर्ण और सम्मानीयचिकित्सा विधा है तथा कुछ स्थितियों में यह अति आवश्यक और अपरिहार्य है.हमारा उद्देश्य अन्य संभावित उपचारों के बारे में बताना है न कि शल्यचिकित्सा को कम आँकना.
इलाज के समय और परिणामों को लेकर आपकी अपेक्षाएं वास्तविकता से दूर हो सकती हैं. इसके बारे में चिकित्सक से इलाज के पूर्व स्पष्ट जानकारी लेना आपको अनावश्यक निराशा और चिकित्सक को प्रतिष्ठा हानि से बचाएगा.
पूरे प्रयासों के बावजूद कुछ बीमारियों में पूर्णकालिक लाभ मिलना लगभग असंभव है.
होमियोपैथिक चिकित्सा में चिकित्सक बेहदमहत्वपूर्ण है अतः अपने होमियोपैथिक चिकित्सक का चुनाव बेहद देखभाल कर करें. होमियोपैथी को छोड़ने से पहले अपने होमियोपैथ को बदल कर देखें.
यह सभी निर्देश आप वेबसाइट पर हिंदी और अंग्रेजी दोनों में भी पढ़ सकते हैं.
http://draryas.com/guidelines.html